baglamukhi sadhna Fundamentals Explained



२२. श्रीकीलिन्यै नमः दुष्ट-शक्तियों को बाँधनेवाली शक्ति को नमस्कार।

जो साधक अपने इष्ट देवता का निष्काम भाव से अर्चन करता है और लगातार उसके मंत्र का जप करता हुआ उसी का चिन्तन करता रहता है, तो उसके जितने भी सांसारिक कार्य हैं उन सबका भार मां स्वयं ही उठाती हैं और अन्ततः मोक्ष भी प्रदान करती हैं। यदि आप उनसे पुत्रवत् प्रेम करते हैं तो वे मां के रूप में वात्सल्यमयी होकर आपकी प्रत्येक कामना को उसी प्रकार पूर्ण करती हैं जिस प्रकार एक गाय अपने बछड़े के मोह में कुछ भी करने को तत्पर हो जाती है। अतः सभी साधकों को मेरा निर्देष भी है और उनको परामर्ष भी कि वे साधना चाहे जो भी करें, निष्काम भाव से करें। निष्काम भाव वाले साधक को कभी भी महाभय नहीं सताता। ऐसे साधक के समस्त सांसारिक और पारलौकिक समस्त कार्य स्वयं ही सिद्ध होने लगते हैं उसकी कोई भी किसी भी प्रकार की अभिलाषा अपूर्ण नहीं रहती ।

१५.ॐ ह्लीं श्रीं अं श्रीभोगिन्यै नमः मुख-वृत्ते (सम्पूर्ण मुख-मण्डल में) ।

इस प्रकार ‘कृष्ण यजुर्वेद’ के उक्त मन्त्र में आया ‘विष्टम्भः’ पद श्रीबगला विद्या के प्रसिद्ध ‘स्तम्भन’-तत्त्व को बताता है।

In every particular person, exactly the same self-electric power exists as that energy, which happens to be present in your body in a dormant state resulting from being surrounded by worldly attachments, misdeeds and five restrictors.

मां बगलामुखी यंत्र चमत्कारी सफलता तथा सभी प्रकार की उन्नति के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है। कहते हैं इस यंत्र में इतनी क्षमता है कि यह भयंकर तूफान से भी टक्कर लेने में समर्थ है। माहात्म्य- सतयुग में एक समय भीषण तूफान उठा। इसके परिणामों से चिंतित हो भगवान विष्णु ने तप करने की ठानी। उन्होंने सौराष्‍ट्र प्रदेश में हरिद्रा नामक सरोवर के किनारे कठोर तप किया। इसी तप के फलस्वरूप सरोवर में से भगवती बगलामुखी का अवतरण हुआ। हरिद्रा यानी हल्दी होता है। अत: माँ बगलामुखी के वस्त्र एवं पूजन सामग्री सभी पीले रंग के होते हैं। बगलामुखी मंत्र के जप के लिए भी हल्दी की माला का प्रयोग होता है।

कौलागमैक-संवेद्यां, सदा कौल-प्रियाम्बिकाम् ।

विनियोग- ॐ अस्य श्रीबगला-मुखी-कवचस्य श्रीशिव ऋषिः , पंक्ति: छन्द: श्रीबगला-मुखी देवता, धर्मार्थ-काम-मोक्षेषु पाठे विनियोग: ।

‘धरुणः पृथिव्याः’ पद पृथिवी तत्त्व की प्रतिष्ठा बताता है-‘प्रतिष्ठा वै धरुणम्’ (शतपथ ब्राह्मण ७-४-२-५)।

(ऐतरेय ब्राह्मण २, १०) अर्थात् देवताओं का मनस्तत्त्व वाक्, अग्नि और गौ में ओत-प्रोत है। अत: इन तीनों शक्तियों के समुदाय को मनोता’ कहते हैं।

४७. ॐ ह्लीं श्रीं षं श्रीपीतायै baglamukhi sadhna नमः – हृदयादि वाम-करान्तम् (हृदय से बॉएँ हाथ के अन्त तक)

Baglamukhi Puja is a strong Hindu ritual that is thought for being very productive in removing hurdles and

‘वेद’ एवं ‘तन्त्र’ के सन्दर्भ में : सिद्धि-प्रदा श्रीबगला-मुखी “राष्ट्र-गुरु’ श्री स्वामी जी महाराज

ऋषि भी श्रीभैरव जी हैं, किन्तु इसको पूछनेवाली श्रीपार्वती जी हैं और बतानेवाले श्रीशङ्कर

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